राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल के अधिकांश समय में देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचकर उसे जानने की कोशिश की और जनमानस से अपना आत्मीय जुड़ाव बढ़ाया। बापू का छत्तीसगढ़ कनेक्शन भी इतिहास के अमिट स्मृतियों में दर्ज है। पहली बार जब गांधी हरिजन आंदोलन के तहत राजधानी रायपुर पहुंचे थे, तो बिलासपुरवासियों के विशेष आग्रह पर उन्होंने जल्द बिलासपुर आने का वादा किया था । साल 1933 में बिलासानगरी में बापू के कदम पड़ते ही बिलासपुर की माटी धन्य हो गई ।
बापू को देखने लोगों ने हफ्तों पहले से जमाया था बिलासपुर में डेरा गांधी 25 नवंबर 1933 को सड़क मार्ग से बिलासपुर पहुंचे थे। गांधी के आगमन की सूचना मिलते ही बिलासपुर और आसपास के लोगों में गांधी दर्शन के लिए इस कदर दीवानगी छाई कि लोग हफ्तों पहले से ही बिलासपुर में डेरा जमाने लगे थे। पहली बार शहरी क्षेत्र में दूर-दूर से पहुंचे लोगों का रेला दिख रहा था। उन दिनों शहर में लोग या तो पैदल या फिर बैलगाड़ी के माध्यम से पहुंच रहे थे। शहर आने से पहले रायपुर रोड में जगह-जगह उनका भव्य स्वागत किया गया।
फूल और सिक्के लुटा कर किया बापू का स्वागत रायपुर-बिलासपुर मार्ग में लोगों की दीवानगी गांधी के प्रति इस कदर थी, कि लोग गांधी के ऊपर फूल और सिक्के लुटा रहे थे। उन दिनों गांधी जी के आगमन को सफल बनाने और सभा आयोजित करने की पूरी जिम्मेदारी कुंजबिहारी अग्निहोत्री, डॉ. शिवदुलारे मिश्रा, अमर सिंह सहगल, बैरिस्टर छेदीलाल जैसे दिग्गजों पर थी। बिलासपुर के सीमा क्षेत्र में पहुंचते ही कुंज बिहारी अग्निहोत्री समेत अन्य ने गांधी जी का स्वागत किया। वर्तमान में जरहाभाठा चौक कहलाने वाली जगह के पास ठाकुर छेदीलाल के नेतृत्व में गांधी का भव्य स्वागत हुआ। फिर गांधीजी को विश्राम के लिए कुंजबिहारी अग्निहोत्री के निवास पर भेजा गया, जहां लोगों की भीड़ बेकाबू हो रही थी। इसी दिन शहर के कंपनी गार्डन में जो आज विवेकानंद उद्यान के नाम से जाना जाता है, वहां महिलाओं की एक सभा आयोजित की गई। गांधीजी इस सभा में पहुंचे और उन्हें देशहित के लिए महिलाओं ने 1000 से भरी एक थैली भेंट की, जिसे गांधी ने आजादी के सहयोग के रूप में बहुत कम माना और फिर महिलाओं ने बापू को तत्काल अपने जेवरात भेंट कर दिए।
हाथ हिलाकर बापू ने भीड़ को शांत कराया महात्मा गांधी की जनसभा में शहर के शनिचरी क्षेत्र में आयोजित की गई। जनसभा लाखों की भीड़ आ गई, जिसे संभाल पाना मुश्किल था। उस सभा में मौजूद डॉ. शिवदुलारे मिश्रा, बैरिस्टर छेदीलाल के अलावा अन्य गणमान्य लोगों ने भरसक कोशिश की, कि माहौल को नियंत्रित किया जाए लेकिन वो असफल रहे। फिर बापू ने खुद मोर्चा संभाला और हाथ हिलाकर लोगों से इशारों में शांत होने की अपील की, जिससे सब शांत हो गए और मन्त्रमुग्ध होकर बापू को सुनने लगे। गांधी ने इस सभा में मूलरूप से दलित और हरिजन उत्थान के विषय को उठाया था। गांधी के प्रति आदर और श्रद्धा का भाव इस कदर था कि सभा खत्म होने के बाद वहां मौजूद लोग सभास्थल से मिट्टी को उठाकर अपने साथ ले गए थे।
महात्मा गाँधी, २२ नवम्बर १९३३। फोटो सौजन्य -राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय , नई दिल्ली ।
बिलासपुर का वह स्थान जहाँ 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के बाद पहली बार झंडा फहराया गया ।